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अभय देओल बोले- दुखद है कि लोग किसी की मौत के बाद जागते हैं

सुशांत सिंह राजपूत के सुसाइड के बाद से फिल्म इंडस्ट्री लगातार नेपोटिज्म और खेमेबाजी का आरोप झेल रही है। सोशल मीडिया यूजर के साथ-साथ कई बॉलीवुड सेलेब्स भी खुलकर यह मान रहे हैं कि सुशांत इंडस्ट्री में होने वाले भेदभाव के चलते डिप्रेशन में गए थे, जिसने उन्हें आत्महत्या करने को मजबूर कर दिया।

शुरुआत से ही नेपोटिज्म के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया देने वाले अभय देओल ने इस बात पर दुख जताया है कि लोग जागने के लिए किसी की मौत का इंतजार करते हैं।

सुशांत की मौत ने बोलने के लिए प्रेरित किया: अभय

हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में उन्होंने कहा- सुशांत की मौत निश्चित रूप से मुझे थोड़ा बोलने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन, मैं पहली बार आवाज नहीं उठा रहा हूं। पहले भी बड़े मुद्दे उठाए हैं। मुझे खेद है कि सभी लोग किसी की मौत के बाद जागते हैं।
हालांकि, अभय ने इस बात पर खुशी जाहिर की कि लोग अब इस मामले पर ध्यान दे रहे हैं और सुनना भी चाहते हैं। वे कहते हैं- लोग बदलाव की बात कर रहे हैं। न केवल इंडस्ट्री के बाहर, बल्कि अंदर भी। कितनी अच्छी बात है कि आज एक्टर्स खुलकर बोल रहे हैं।

मैं चुप हो गया था, क्योंकि मैं अकेला ही चीखने वाला नहीं बनना चाहता था। आखिर कोई इंसान चट्टान तो नहीं है और मैं अकेला वह बदलाव नहीं ला सकता था, जिसकी हमें जरूरत है। इसलिए मैंने एक बार फिर बोलना शरू कर दिया है।
सुशांत के करियर से रिलेट करते हैं अभय

अभय ने इस बातचीत में स्वीकार किया कि उन्हें सुशांत सिंह राजपूत की मौत ने हिलाकर रख दिया है। जबकि वे उन्हें जानते तक नहीं थे। वे कहते हैं- मैं उसके करियर से रिलेट कर सकता हूं।

उनके मुताबिक, यही वजह है कि उन्होंने इन दबाव वाले मुद्दों के बारे में बात करनी शुरू की, जिन्हें वे सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए उठा रहे हैं।अभय ने हाल ही में सोशल मीडिया पर #makingwhatbollywoodwouldnt के जरिए अपनी फिल्मों 'एक चालीस की लास्ट लोकल', 'मनोरमा : सिक्स फीट अंडर', 'देव डी' और 'रोड' आदि के पीछे की कहानी सबके सामने राखी।

इसे लेकर अभिनेता ने कहा- मुझे लगता है कि इन फिल्मों की ओर ध्यान खींचने का यह सही तरीका है।गैर-फॉर्मूलाबद्ध होने की वजह से उनके पास मार्केटिंग या बड़ी रिलीज के लिए पर्याप्त पैसा नहीं था। इसलिए ज्यादातर लोग इनके बारे में जानते ही नहीं हैं। यकीन मानिए वे बहुत अच्छी हैं और आज भी उन्हें देखना मनोरंजक होगा।

'इंडस्ट्री में दशकों से हैं लॉबी कल्चर'

अभिनेता ने फिल्म 'जिंदगी न मिलेगी दोबारा' को लेकर एक पोस्ट की थी। इसमें उन्होंने लिखा था कि इंडस्ट्री में ऐसे कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके हैं, जिसके जरिए लोग आपके खिलाफ लॉबी करते हैं। उनकी इस पोस्ट ने खूब अटेंशन बटोरा था। वे कहते हैं- वे अपने पूर्वाग्रह को छिपाने से भी बाज नहीं आते, कुछ ऐसा जो वे सामान्य रूप से करने के लिए प्रयास करते हैं।

हमारी इंडस्ट्री में लॉबी कल्चर सालों से नहीं, बल्कि दशकों से है। इसलिए कोई खड़े होने या कुछ परवाह करने के बारे में नहीं सोचता। मैं यह सब इसलिए कह रहा हूं मैं फिल्म फैमिली में बड़ा हुआ हूं और बचपन से ही गेम के बारे में सुनता आ रहा हूं। बचपन में मैंने दूसरों के अनुभव के जरिए सुना था और अब प्रोफेशनल के तौर पर मैंने इसे खुद देखा।

मैं विशेषाधिकारों पर फोकस करता हूं। मेरे पास परिवार है, दोस्तों का बड़ा सा ग्रुप है। मेरे पास काम है, एक्टिंग करता हूं, प्रोडक्शन कर रहा हूं और फिलहाल दो देशों (भारत और अमेरिका) में काम कर रहा हूं। मैंने अपना रास्ता खुद बनाया। कभी गेम नहीं खेला। इसलिए, अब मैं अपने आपको इसके बाहर खेलता हुआ पाता हूं।

'फिल्म इंडस्ट्री बहुत कॉम्पिटेटिव जगह है'

जब अभय से पूछा गया कि क्या वे यह मानते हैं कि फिल्म इंडस्ट्री में पूर्वाग्रह और प्रथाओं का प्रभाव किसी की मानसिक स्थिति पर पड़ सकता है तो उन्होंने कहा- यह बहुत ही कॉम्पिटेटिव जगह है। लोग बहुत ज्यादा इनसिक्योर हैं और आप उन्हें अक्सर यह कहते सुन सकते हैं कि आपकी असफलता मेरी सफलता है।

 


Dainik Bhaskar

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