मशहूर गीतकार अभिलाष का लंबी बीमारी के बाद मुंबई में सोमवार सुबह निधन हो गया। वे लिवर कैंसर से जूझ रहे थे और आर्थिक तंगी के बीच पिछले 10 महीने से बिस्तर पर थे। अभिलाष को उनके अमर गीत ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता...’ के लिए सबसे ज्यादा पहचाना जाता है। खास बात ये है कि चार साल पहले तक उन्हें इस गीत के लिए उनका पूरा पेमेंट तक नहीं मिला था।
अभिलाष ने दिसंबर 2016 में दैनिक भास्कर को दिए इंटरव्यू में इस अमर गीत को लिखने के पीछे की कहानी बताई थी। उन्होंने कहा था, 'सन् 1985 की बात है, जब मुझे बतौर गीतकार ‘अंकुश’ फिल्म मिली थी। इसके संगीतकार कुलदीप सिंह थे और निर्माता-निर्देशक एन. चंद्रा।
'मैंने 60-70 मुखड़े लिखकर दिए थे सब रिजेक्ट हो गए'
इसमें कुल 4 गाने थे, जो मुझे ही लिखने थे। मैंने दो गाने- ‘ऊपर वाला क्या मांगेगा हम से कोई हिसाब...’ और ‘आया मजा दिल दारा...’ लिखकर दिए, जो रिकॉर्ड भी हो गए। लेकिन तीसरे गाने में जब एन. चंद्रा ने प्रार्थना लिखने की बात कही, तब मैं रोजाना 3-4 मुखड़े लिखकर देता और वे उन्हें रिजेक्ट कर देते थे। ऐसा करते-करते दो-ढाई महीने तक मैंने 60-70 मुखड़े लिखकर दिए और उन्होंने सब रिजेक्ट कर दिए।
'परेशान होकर मैंने कहा- मुझे फिल्म नहीं करनी'
अंतत: मैं परेशान हो गया, तब मैंने कहा कि मुझे फिल्म ही नहीं करनी है। मुझे छोड़ दीजिए। मैं इतना बड़ा राइटर नहीं हूं। आप किसी और से लिखा लीजिए। इतना कहकर मैं फ्लैट से बाहर निकल आया। तब मेरे पीछे-पीछे संगीतकार कुलदीप सिंह भी आ गए। उन्होंने मुझे बहुत समझाया तो मैंने कहा कि आखिर क्या करूं! आप कोई मुखड़ा सिलेक्ट ही नहीं कर रहे हैं।
'रास्ते में कुलदीप ने समझाया तो दो शब्द मिल गए'
खैर, शाम का समय था। कुलदीप, मुझे अपनी गाड़ी में बैठाकर जुहू से चले और कांदिवली आ गए। रास्ते में समझाते हुए उन्होंने कहा- तुम तो हिम्मती हो... तुम में बड़ी शक्ति है... आखिर कमजोर क्यों पड़ रहे हो...। यह समझाने के दौरान उनके द्वारा कहे- शक्ति और कमजोर, दो शब्द मेरे दिमाग में अटक गए। तब मैंने ‘इतनी शक्ति मुझे देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो न...’ लिखकर कुलदीप को सुनाया तो उन्होंने कहा कि बन गया मुखड़ा।
एन. चंद्रा ने मुखड़ा सुनते ही कहा- यही तो चाहिए था
वे गाड़ी वापस घुमाकर जुहू आ गए, जहां खाते-बतियाते एन. चंद्रा और नाना पाटेकर बैठे हुए थे। उनके पास पहुंचे तो वे हैरान हो गए कि ये वापस कैसे आ गए। खैर, जब उन्हें ‘इतनी शक्ति मुझे देना दाता...’ सुनाया तो एक पल के लिए अवाक् होने के बाद बोले कि यही तो मुझे चाहिए था।
गाने ने धूम मचा दी, लेकिन मुझे पेमेंट तक नहीं मिला
बहरहाल, यह गाना रिकॉर्ड हुआ और धूम मचा दी। इसके लिए मुझे 1987 में ज्ञानी जैलसिंह के हाथों ‘कलाश्री’ अवॉर्ड मिला। इतना ही नहीं, ‘दादा साहेब फाल्के’ अवॉर्ड सहित कुल 30-40 अवॉर्ड्स मिले। इसकी वजह से मुझे खूब नाम और काम मिला। लेकिन सबसे बड़ी बात यह कि अभी तक इसका मुझे पूरा पेमेंट नहीं मिला है।
चंद्रा कल आना-परसों आना कहकर टरकाते रहे
इसके निर्माता-निर्देशक एन. चंद्रा मुझे कल आना, परसों आना... कहकर टरकाते रहे तो मैंने पेमेंट मांगना ही छोड़ दिया। इससे भी बड़ी बात यह कि आज तक इस गाने की मुझे रॉयल्टी भी नहीं मिलती है। इसे लेकर राज्य सभा में जावेद अख्तर साहब ने मेरे नाम का उदाहरण देते हुए मुद्दा उठाया था। काफी जद्दोजहद करके कॉपीराइट एक्ट भी पास करवाया, लेकिन पता नहीं आज तक रॉयल्टी क्यों नहीं मिलती।
(जैसा कि दिसंबर 2016 में दिए इंटरव्यू में उन्होंने ने उमेश उपाध्याय को बताया था)
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