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राइटर सिद्धार्थ और गरिमा शुरू कर रहे अपना यूट्यूब चैनल, बिना फीस के लोगों को सिखाएंगे स्क्रिप्टराइटिंग

लेखक, गीतकार, डॉयलॉग राइटर और स्क्रीनप्ले राइटर सिद्धार्थ और गरिमा की जोड़ी ने दैनिक भास्कर से बात करते हुए बताया कि वो अपना यूट्यूब चैनल नए और टैलेंटेड राइटर्स के लिए ले आये हैं, जहां उन्हें कोई फीस नही भरनी होगी और बड़ी आसानी से वे ट्रिक्स और टिप्स से सीख पाएंगे कि किस तरह से स्क्रिप्ट राइटिंग की जाती है।

इसके साथ ही सिद्धार्थ और गरिमा ने बताया कि किस तरह से स्क्रिप्ट राइटर एक कहानी को लिखता है लेकिन जब वह फिल्म एडिट टेबल पर जाती है तो बिना जाने बुझे फिल्म के अहम सींस को कट कर दिया जाता है और जिसके चलते फिल्म लोगो को पसंद आती है। उन्होंने बताया कि 'बत्ती गुल मीटर चालू' में कैसे परिवार के सीन को एडिट कर हटा दिया गया था ।

सवाल- आप दोनों अपना एक यूट्यूब चैनल ला रहे है जहां लोगों को स्क्रिप्ट राइटिंग के बारे में सिखाएंगे। यह आइडिया कब आया?

जवाब- 'लॉकडाउन के दौरान बहुत सी क्रिएटिव एनर्जी आयी जो बहुत पॉजिटिव भी है, तो उस समय लगा कि क्यों ना इस समय का सही सदुपयोग किया जाए। एक फोन के साथ कुछ क्रिएटिव किया जाए और अगर मजाक-मजाक में लोगों को एक कला सिखा दी जाए, तो इससे बेहतर क्या होगा।'
'हमें सोशल मीडिया पर लोग हमेशा कहते थे कि आप हमें स्क्रिप्टिंग सिखा दें। राइटर बनने की कोई टिप्स है तो हमें बताएं। हमें लगा क्यों ना इसको एक रूप दे दिया जाए, जहां मजाक-मस्ती हो और साथ में कुछ सिखाया जा सके। सच्चाई यह है कि अगर कोई राइटर है तो है, मगर लाखों का खर्च करके, कोचिंग करके कोई राइटर नहीं बन सकता। जिसमें यह कला है उसे थोड़ी टिप्स देकर बेहतर किया जा सकता है। हमने सोचा कि उन लोगों को फ्री में यह सिखाया जाए।'

सवाल- नए स्क्रिप्ट राइटर्स की कहानियों में कमी कहां आती है, जो उनकी कहानी को कमजोर बनाती हो?

जवाब- 'मुझे यह लगता है कि आज लोग मेहनत से कतराते हैं। आमतौर पर हम कमरे में कुछ लिख देते हैं उसको दो-चार लोगों को सुना देते हैं या कहीं पब्लिश कर देते हैं। मगर हम घर से बाहर निकल कर किसी विषय पर रिसर्च नहीं करते। आप एक यूट्यूब वीडियो देखते हो और कहते हो चलो हमारी यह रिसर्च हो गई। सबसे ज्यादा कमी हमें उसी डिपार्टमेंट में लगती है।'
'पहली बात लोग रिसर्च नहीं करना चाहते, दूसरी बात किसी भी राइटर में लगन, निष्ठा और अनुशासन का होना बहुत जरूरी है। साथ में जो हमने महसूस किया आज के राइटर में कॉन्फिडेंस की बहुत कमी पाई जाती है, क्योंकि कहानी एक ऐसी चीज है जिस पर हर व्यक्ति का अपना नजरिया होता है ऐसे में एक्टर-प्रोड्यूसर-डायरेक्टर हर कोई आपको सलाह देगा, मगर आप कॉन्फिडेंट होने चाहिए कि आपने जो लिखा है वह परफेक्ट है।'

सवाल- आप लोगों ने जैसे कबीर सिंह, रामलीला, बत्ती गुल मीटर चालू जैसी कई फिल्में की है जो बहुत चली हैं। मगर कुछ फिल्में एवरेज रही हैं तो ऐसे में आपके मानक क्या होते हैं कि अगर कोई फिल्म असफल होती है तो उसके पीछे क्या वजह होती है? आप क्या मानते हैं?

जवाब- किसी भी फिल्म की एक जर्नी होती है, एक सफर होता है। लिखने से लेकर जब वो थिएटर में आती है तो उसका एक लंबा सफर होता है। तकरीबन 2 साल, कई बार ये 3 साल का सफर भी हो जाता है। फिल्मों का चलना नहीं चलना हमारे यहां एक अलग मुद्दा हो जाता है। किसी भी फिल्म का पहला इंसान राइटर होता है मगर फिल्म बनने पर तक वह कई हाथों से होकर गुजरती है। ऐसे में महत्वपूर्ण होता है कि पूरी यूनिट की सोच एक जैसी हो और अगर कहीं भी डिस्कनेक्ट आता है तो फिर वहां असफलता हाथ लगती है। मगर हम आज मैदान में हैं तो सफलता-असफलता सारी बुराई और तारीफ मिलती रहेंगी उसका सामना करना चाहिए।

सवाल- कई बार स्टोरी तो सही ढंग से लिखी जाती है लेकिन फिल्म बनने के दौरान उसमें कई सारे बदलाव लाये जाते हैं?

जवाब- 'ये बात बिल्कुल सही है कई बार ऐसा होता है कि एक्टर और डायरेक्टर को लगता है कि उन्हें ऑडियंस की चॉइस पता है। वो उसके अनुसार उस कहानी में बदलाव करते हैं और फिर बाद में पछताते हैं, लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं हुआ है। हमारी स्क्रिप्ट के साथ छेड़छाड़ एडिटिंग टेबल पर हुई है। क्योंकि डायरेक्टर को लगता है कि फिल्म अच्छी शूट हो गयी है, अब तो मैं इसे काट ही लूँगा और उन्हें जरूरी नहीं लगता कि एडिटिंग टेबल पर राइटर भी मौजूद रहे।'
'जबकि स्क्रीन प्ले एडिटिंग की तरह ही होता है। स्क्रीन पर जो लिखा जाता है वो 200 पेज की स्क्रिप्ट को एडिट किया जाता है, तो एक लेखक अपने आप एडिटर होता है। हम एक समय एक प्रोजेक्ट पर ही काम करते हैं उसके पोस्ट प्रोडक्शन तक साथ में काम करना पसंद करते हैं। डायरेक्टर और प्रोड्यूसर को भी लेखक को लेकर खुले माइंड अपनाना चाहिए और उन्हें भी इन्वॉल्व करना चाहिए।'

सवाल- कोई ऐसी फिल्म जिसको लेकर बहुत उम्मीद थी कि ये बहुत अच्छी चलेगी, या ये सीन बहुत जरूरी है इस फिल्म में और वो ना हुआ हो?

जवाब- जी 'बत्ती गुल मीटर चालू' में ऐसा हुआ था। उस फिल्म में दो परिवारों शाहिद और श्रद्धा के परिवार का बहुत अहम रोल था। जिसको काट दिया था, जबकि उसको हमने शूट भी किया था, उन्हें एडिट में जाकर लगा ये लंबी हो रही है, या ये पोर्शन जरूरी नहीं है। हमारा फोकस सिर्फ शाहिद के पोर्शन पर होना चाहिए, और उन लोगों ने उसको काट दिया।'
'इसके बावजूद फिल्म लंबी थी। मगर हमें लगता है कि उसे नहीं काटा जाना चाहिए था। 'बत्ती गुल मीटर चालू' एक बहुत प्यार सी लिखी हुई स्क्रिप्ट थी, उसी लोकेशन में जाकर उसे लिखा था। उसमें एक नई तरह की भाषा या टोन का भी हमने प्रयोग किया था।

सवाल- लॉक डाउन में किस तरह की स्टोरी की डिमांड आई है और क्या नया किया आप लोगों ने इस दौरान?

जवाब- 'प्रोड्यूसर को लगता है इस समय ह्यूमर का टाइम है लोग तनाव में से बाहर निकलेंगे तो उन्हें सीरियस विषय शायद पसंद ना आए। लोग ह्यूमर और लाइट मूड फिल्म पर जाना चाहते हैं। हमारी दो फिल्में जिसकी स्क्रिप्ट पर काम किया है जिसकी कास्टिंग भी हो चुकी है जल्द उसका अनाउंसमेंट भी जल्द करेंगे।'
'इसके अलावा हम दो और स्क्रिप्ट पर काम कर चुके हैं। जिस पर काम करने के लिए हम जनवरी में ही अमेरिका होकर आ गए थे। बहुत एक्सपेंसिव रिसर्च की है हमने उस पर और वो लगभग तैयार है। वह एक लव स्टोरी है। दूसरी ह्यूमर के जोनर में है। अक्षय सर एक स्टोरी लेकर आये थे, वो ह्यूमर पर है उस पर भी काम चल रहा है। लेकिन इन दिनों रीमिक्स पर बहुत काम करने को आ रहा है। मगर मजा तब ज्यादा आता है जब हम अपने आईडिया को करते हैं।'



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गरिमा और सिद्धार्थ स्क्रिप्टराइटर, लेखक, गीतकार और डायलॉग राइटर हैं। उन्होंने गोलियों की रासलीला राम-लीला, बाजीराव मस्तानी, राब्ता, टॉयलेट एक प्रेमकथा, बत्ती गुल मीटर चालू और कबीर सिंह समेत कई फिल्मों में अपना योगदान दिया है।


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